आज निष्ठा बहुत ही ज्यादा खुश थी क्योंकि अब उसे फैशन डिजाइनिंग और माॅडलिंग में अपना कैरियर बनाने का सुनहरा अवसर मिल रहा था ।
वो भी मुम्बई के जानेमाने ब्रांडेड एक हाई-प्रोफाइल कॉन्टेस्ट के माध्यम से ।
निष्ठा ने अपनी कुछ फोटोज और फुल बायोडाटा भेजा था जिसके आधार पर कॉन्टेस्ट टीम द्वारा उसका चयन कर लिया गया था !!
रही बात कॉन्टेस्ट में रायपुर जाने की तो
मम्मी-पापा को वह पहले ही मना चुकी थी।
पार्टिसिपेशन फीस दस हजार रूपये ऑनलाइन मनी ट्रांसफर के माध्यम से वह सेन्ड भी कर चुकी थी ।
अगर चयन हुआ तो सीधे मुम्बई की फ्लाइट यानि बहुत ही ज्यादा खुश थी निष्ठा ।
निष्ठा नियत तारीख को एक छोटे से गाँव के सीमा रेखा की हद को पार करते हुए रायपुर शहर का रूख कर चुकी थी।
खूबसूरती के पैमाने में निष्ठा किसी भी नज़रिये से कम नहीं थी । खूबसूरत तो इतनी कि अगर किसी शायर की नज़र पड़े तो महफ़िल रंगीन हो जाये और किसी कवि की नज़र पड़े तो आदि कवि विद्यापति जी पुन: जीवन्त हो जायें ।
तीखे नैन-नक्श ..कज़रारी आँखें..गुलाबी होंठ..हिरनी जैसी चाल..फिगर तो ऐसा कि ..किसी चाँदनी रात में चाँद की अगर नज़र पड़ जाये तो सागर में ज्वार-भाटा और सुनामी सब एक साथ ही हो जाये ।
वैसे तो काॅलेज के पहले साल को रेस्ट इयर ही कहा जाता है मगर निष्ठा पढ़ाई में भी बहुत जीनियस थी ।
काॅलेज के कैम्पस में जब भी वो गुजरती थी ..न जाने कितने आशिक़ों के दिल मचल उठते थे..तड़प उठते थे । सभी स्वमेव अपना - अपना टोकन नम्बर लेकर बैठे हुए थे कि कब निष्ठा की नज़र पड़े किसी विशेष आशिक़ पर और वो जीवन भर के लिए मालामाल हो जाये।
रायपुर में नियत तारीख और समय को
काॅन्टेस्ट प्रोग्राम शुरू हो चुका था ।
जब बारी आई निष्ठा की कॉन्टेस्ट में ...तो सारा ऑडिटोरियम तालियों से गूँज उठा ।
ऐसा लग रहा था जैसे पूरा का पूरा रायपुर ही एक जगह इकट्ठा होकर उसके ब्राइट फ्यूचर के लिए एक साथ विश कर रहा हो।
अब बारी थी सेलेक्शन राउन्ड की।
सभी पार्टिसिपेन्ट की धड़कने तेज थीं कि आख़िर कौन है... आज का कॉन्टेस्ट विनर ??
जैसे ही निष्ठा का नाम विनर के लिए पुकारा गया तो एकबारगी निष्ठा को यकीन ही नहीं हुआ कि उसने जो सुना है नाम अपना अभी-अभी .. ये उसी का ही नाम है या किसी और का !
सभी लोग ताली बजा-बजाकर उसका नाम जो चिल्ला रहे हैं ...निष्ठा निष्ठा ..वो सच है या कोई सपना ??
यक़ीन उसे तब हुआ जब पिछले साल की विनर उसका हाथ पकड़कर स्टेज तक ले गई और अपना ताज उसे सम्मानपूर्वक पहनाई ।
निष्ठा को यही समझ नहीं आ रहा था कि..वह रिएक्ट करे भी तो कैसे करे ।
बस और क्या था ..अगले ही दिन शुरू हो चुकी थी उड़ान निष्ठा की.. सीधे मुम्बई के लिए ।
वैसे तो निष्ठा खुश थी इतनी बड़ी मनमाफिक सफलता पाकर मगर कुछ परेशान भी थी अन्दर से।
कहीं न कहीं एक अनजाने डर से..अनजाना शहर..अनजाने लोग..सब कुछ बिलकुल अचानक-अचानक इतना बदला हुआ परिदृश्य।
ये डर स्वाभाविक भी था..लगभग-लगभग हर किसी को होता ही है यह डर..जो जीवन में ज़रूरी भी है और नुकसानदायक भी !!
जीवन में जब कभी भी हमारे सपने वास्तविक रूप लेते हैं तो पहली बात ये कि सहसा यक़ीन नहीं होता है और दूसरी बात ये कि बदली हुई स्थिति को एक्सेप्ट करने में थोड़ा वक़्त भी लगता है ।
यही डर तो हाथ पकड़कर सोने के रथ में बिठा भी देता है..और गिरा भी देता है।
हाँ, ये भी सच है..विजेता बनना है तो डर रूपी बाधा को पार करना ही पड़ेगा ।
डर के आगे सिर्फ जीत ही नहीं होती ..डर के आगे हार जाने का एक और नया अनजाना डर भी होता है।
और फिर.. एक समय ऐसा भी आता है जब इस डर के विभिन्न सोपानों को पार करता हुए इन्सान निडर भी हो जाता है ।
जैसे ही एनाउंसमेंट हुआ कि हम बस थोड़ी देर में ही मुम्बई एयरपोर्ट में लैंड करनेवाले हैं..निष्ठा की धड़कन इतनी तेज चल रही थी ..ऐसा लग रहा था ..जैसे काबू से ही बाहर हो ।
निष्ठा का मन कर रहा था जैसे कि वापस चली जाऊँ अपने घर..अपने मम्मी के पास..अपने पापा के पास ।
सेलिब्रट भी तो नहीं कर पाई थी वो..विनर होने की खुशी को ..माँ के सीने से लिपटकर रोने का आनन्द भी तो नहीं ले पाई थी वो !!
सफलता की यही तो खूबी है..एक हाथ से बहुत कुछ देती है तो दूसरे हाथ से बहुत कुछ ले भी लेती है !
हर कोई तो सेफ जोन ही खोजता है मगर सेफ जोन में जीत भी उतनी ही मिलेगी जितना उस जोन के अन्दर है लेकिन सफलता अगर अनलिमिटेड चाहिए तो सेफ जोन के बाहर जाना ही पड़ेगा ।
परेशान थी निष्ठा अन्दर से कहीं न कहीं ।
आखिर वह अपना प्राब्लम किससे शेयर करे..उसे यह समझ ही नहीं आ रहा था क्योंकि मम्मी-पापा तो रायपुर के विवेकानंद एयरपोर्ट से ही वापस जा चुके थे ।
उसके मन की व्यथा को ताड़ गये थे सपोर्ट टीम के मैनेजर वाडेकर जी।
वाडेकर जी ने ज्यादा कुछ नहीं कहा..बस इतना ही कहा..
निष्ठा जी,
परेशान न होइये..हम सभी आप के साथ हैं !!
हमें अपना दोस्त ही समझिये ।
एरोप्लेन लैंड करते ही आप सबसे पहले अपने मम्मी-पापा से बात कर लीजियेगा।
....आपको बहुत ही रिलेक्स महसूस होगा !!
निष्ठा जैसे ही एरोप्लेन से उतरी..उसने सबसे पहला काम किया ..अपने मम्मी-पापा को काल किया !
कभी-कभी जीवन में जब हम आगे बढ़ रहे होते हैं तो हमारा मन पीछे की ओर बहुत तेजी से दौड़ रहा होता है !
फिलहाल वह अपने टीम के साथ एक बड़े से टू स्टार होटल में रूकी।
फिर शुरू हुआ शाम को पत्रकारों के सवालों का कभी न खत्म होने वाला एक बोझिल दौर...।
जब टीम द्वारा इन्टरव्यू का समाप्त करने का सिग्नल हुआ तभी जाकर वह चैन की साँस ली ।
वैसे तो विनर राशि एक लाख रूपया मिला ही हुआ था निष्ठा को ...वह जस का तस पड़ा हुआ था उसके एकाउंट में क्योंकि अभी तक तो सारा खर्चा टीम ही वहन कर रही थी !!
टीम मैनेजर वाडेकर जी ने निष्ठा को बताया कि कल शाम को जाने-माने डायरेक्टर मिलने आने वाले हैं आपसे ..नाइन्टी नाइन पर्सेन्ट चांस है कि वो आपको किसी नई मूवी में लांच करें ।
ये बातें हो ही रही थी तभी एक एड एजेन्सी आई और निष्ठा को उसने शानदार ऑफर दिया एक एड में काम करने का ।
शर्त यही थी कि निष्ठा के हाँ करते ही उसके खाते में दो लाख अभी के अभी ट्रांसफर कर दिया जायेगा..
बाकी आठ लाख रूपया काम होने के बाद..काम ज्यादा कुछ नहीं..इनर वियर एड के लिए मात्र एक घंटे की शूटिंग।
बाज़ारवाद विषय चर्चा श्रंखला में लेखक : वेदव्यास मिश्र की काल्पनिक कहानी
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सर्वाधिकार अधीन है

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



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