अवध मे चल रही पुरवाइय़ा
बरसा ऋतु अब आने को है
दम- दम दामिनी दमक रही है
घम- घम बदरा ,कारे बदरा
आज अवध मे आने को है
ज्यो बरसेगी झम झम बरखा
धरा थोडा शरमायेगी हरित
वसन मे लिपट लिपट वो
पुष्प प्रसून सी खिल जायेगी
अधरों पर जलज विराजे
बासंती बन मुस्कायेगी
इसी बरखा में खेले रधुवर
संग लक्ष्मण भरत चारों भैया
संग में नाच रही रघुरनिया
दशरथ आनंद विभोर हैं
अद्भुत अनुपम छटा अवध की
सखी देखन मैं जाऊंगी
पुरवइया का पात पकड़ कर
रामलला के दर्शन कर आऊंगी