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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

तमाशा बन गया हूँ - ताज मोहम्मद

तमाशा बन गया हूँ तुम्हारी महफ़िल में आकर।
खूब इज्ज़त दी तुमनें हमको मेहमान बनाकर।।1।।

कत्ल कर देते तुम शौक़ से मेरे दुश्मन बनकर।
तुमको मारना ना था मुझे मेरी इज्जत गिराकर।।2।।

हम तो थे ही शरीफ हमेशा शराफत ही दिखाते।
देख मर गए तेरी महफ़िल में इसको दिखाकर।।3।।

इक बार तो कहते हमे तुमसे इश्क़ नहीं है सनम।
हम चले जाते बज़्म से दिले नादाँ को समझाकर।।4।।

मांगते क्या हो दीवानों से चाहने के तुम सुबूत।
परवाने ने की वफ़ा खुद को शम्मा में जलाकर।।5।।

कहा था तुमसे हमको चाहो या ना चाहो सनम।
एक दिन जाएंगे तुमको अपने गम में रुलाकर।।6।।

ताज मोहम्मद
लखनऊ




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (3)

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रीना कुमारी प्रजापत said

एक दिन जायेंगे तुम को अपने गम में रुलाकर..... ये हुई न बात very very Intresting

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

Same 2 same as Reena Mam

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

कत्ल कर देते तुम शौक़ से मेरे दुश्मन बनकर। तुमको मारना ना था मुझे मेरी इज्जत गिराकर Bahut khoob ...

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