( कविता ) ( सपना ऐसा.....)
सपना ऐसा देखा है.
मैंने ये सोच रखा है
प्यारी तुम से शादी कर कर
ल्याऊंगा तुमें घर पर
न किसी का डर होगा
सुन्दर हमारा घर होगा
सपना ऐसा देखा है
मैंने ये सोच रखा है
बाद में दो हमारे बच्चे होंगे
सब से सुंदर अच्छे होंगे
घर हमारा होगा ऐसा
बिलकुल होगा स्वर्ग जैसा
सपना ऐसा देखा है
मैंने ये सोच रखा है
तुम बच्चों को दूध पिलाना
फिर उन्हें तुम सुलाना
मैं बच्चों को नहलाऊंगा
रोएंगे तो मनाऊंगा
सपना ऐसा देखा है
मैंने ये सोच रखा है
तुम रूठी तो मैं मनाऊंगा
तूमें फिर मैं हसाऊंगा
मैं रूठा तो तुम मनाना
मुझको फिर तुम हंसाना
सपना ऐसा देखा है
मैंने ये सोच रखा है
होने नहीं देंगे घर में कोई लफ़ड़ा
कभी न करेंगे लड़ाई और झगड़ा
हम मरते दम तक साथ हैं साथ न छोड़ेंगे
पति पत्नी का ये रिश्ता कभी भी न तोड़ेंगे
सपना ऐसा देखा है
मैंने ये सोच रखा है
भूख लगी तो रोटी सब्जी बनाएंगे
बच्चों को खिला कर खुद भी हम खाएंगे
कभी बाजार कभी पार्क जाएंगे
वहां पर बच्चों को भी घुमाएंगे
सपना ऐसा देखा है
मैंने ये सोच रखा है
जिन्दगी में कहीं ठोकर खाए तो
मुश्किल घड़ी आए तो
हर दुख कष्ट सहेंगे
दोनो मिल कर रोएंगे
सपना ऐसा देखा है
मैंने ये सोच रखा है
हम बच्चों को पढ़ा कर
बहुत आगे बढ़ा कर
ऐसा कर दिखाएंगे
समाज सेवी बनाएंगे
समाज सेवी बनाएंगे.......