आत्मा की मुक्ति
डॉ. एच सी विपिन कुमार जैन "विख्यात"
बंधन टूटे, मिले परम गति,
जन्म मरण के चक्र से मुक्ति।
ज्योतिर्मय लोक, जहाँ वास हो,
स्वर्ग आत्मा की अंतिम गति हो।
कर्मों का लेखा-जोखा मिट जाए,
मोह का अंधेरा भी छंट जाए।
ज्ञान की प्रभा फैले चहुँ ओर,
आत्मा विलीन हो उस परम शोर।
न रूप हो कोई, न हो आकार,
बस चेतना का हो विस्तार।
काल और सीमा से परे वह धाम,
आत्मा पाए अपना विश्राम।
यह यात्रा है भीतर की गहरी,
अहंकार की हर गाँठ हो ढीली।
ध्यान और वैराग्य का हो साथ,
मुक्त आत्मा का खुले प्रभात।
हर श्वास बने मुक्ति की धुन,
हर कर्म बने वैराग्य का गुण।
जब तृष्णा का बंधन टूट जाए,
आत्मा अपने स्वरूप को पाए।
यह स्वर्ग नहीं कोई भौतिक स्थान,
यह आत्मा का है परम उत्थान।
बंधन टूटे, मिले जब निज रूप,
वही है मुक्ति, वही अनूप।