हम उनकी निगाहों के सामने, कई बार हुए..
मगर ना जाने कैसे, हर दफ़ा दरकिनार हुए..
बाग़बाँ को तो न था, कांटों से भी गिला कोई..
मगर गुल शबनम के बहाने, अश्क–बार हुए..।
वो आख़िरी दफ़ा जब, गुज़र गया इन राहों से..
तब से ये ज़मीं और, आसमां भी बे–दयार हुए..।
तेरे मेरे हिस्से की, जब हर चीज़ अलग हो गई..
तो ढलती छांव के किनारे भी, इक दीवार हुए..।
उनको हमारी हकीकत से, बेज़ार ही रहने दो तो अच्छा..
बहुत वक्त गुज़र गया, हमारे आंसुओं पे उनको ऐ'तिबार हुए..।
पवन कुमार "क्षितिज"

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




