साध लो मन को
खुद सब सध जायेगा।
मन का मन का फेरा है
कुछ भी ना संग जायेगा।
आज़ मन संलिप्त है ।
आज़ मन आशक्त है ।
आज़ मन खुश ।
तो आज़ उदास है।
मन ने मन से
ना जाने कितने मन
को मरवाया है।
मन ने मन की बात सुन
कितनें युद्धों को लड़वाया है।
मन से कोई लैला तो
मन से कोई मजनू बना ।
मन के झांसे में आकर
कोई हीर तो कोई रांझा बना।
मन से श्री
मन से हीं फरहाद बना।
मन को हीं ढील देकर
कोई मन से हीं मरा।
मन ने आदमी को
भात तो कहीं लात खिलाया।
मन ने हीं मिलाया
मन से हीं सब बिछड़े।
मन से कोई आगे
तो मन से हीं कईं पिछड़े।
मन ने आकाश
तो कहीं पाताल दिखाया।
मन ने हीं युद्ध
तो कहीं मिलाप करवाया।
मन से अलगाव
दुराव
पराभव
अभाव
मन से हीं लगाव
मिलाव
मन से हीं
सबकुछ हासिल।
मन से हीं कोई काबिल।
मन से हीं दुखी
मन से हीं खुशी।
भैया ये मन ही कभी
हंसाए ..
ये मन हीं कभी रुलाए।
इस मन ने ना जाने क्या क्या
है कराए।
मन से हीं दंगा फसाद।
मन से हीं बीमार अवसाद।
मन से हीं आबाद
तो मन हीं करे बरबाद।
लिया जो मन को साध
वो हीं समझो बन गया
इंसान..
बाकि क्या हैं ...इस दुनियां में..सिर्फ
इंसानों के भेष में घूम रहें शैतान..
इंसानों के भेष में घूम रहें शैतान..

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




