आज न जाने मन क्यों अशान्त लग रहा।
जाने किस की तलाश मे शाम से रम रहा।।
कल तक जो चंचल और बाबरा बहुत था।
आज उदास होकर बैठा प्यार को रम रहा।।
जो उनकी याद में जाता फिर लौट आता।
आज कमरे के अंदर ही 'उपदेश' रम रहा।।
- उपदेश कुमार शाक्यवार 'उपदेश'
गाजियाबाद