अंधेरे में अपना साया साथ छोडते देखा।
विपत्तियो में ज्यादातर इंसान रोते देखा।।
लफ्जो पर काबू न रहा कुछ भी कहती।
हौसला बढाने वाले से नाता तोडते देखा।।
उसको पता नही पाप पुण्य क्या बलाय।
एक द्वार बन्द करती दूसरा खोलते देखा।।
संघर्ष ही जीवन बखूब पता उसे 'उपदेश'।
जलते हुए दीपक से उजाला होते देखा।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद