अरे ओ हरिया पार्ट - 5
जब से गब्बर और हरिया का अपहरण हुआ है तब से इस दिल में एक उथल-पुथल सी मची हुई है और न जाने क्यूं अब मेरी कलम आराम पर आराम फरमा रही है। क्या करूं समझ में नहीं आ रहा है।
और अब एक नई खबर ने यहां पर खलबली मचाई हुई है, जब भी उस आवारा आशिक शायर लेखराम यादव ने लिखन्तु डाॅट काॅम पर अपनी गजलों और गीतों की दुकान सजाई है तब से अशोक कुमार पचोरी आर्द्र जी बस एक ही तरह के कमेंट करने के फोबिया के शिकार हो गए हैं । वो अपने कमेंट में ज्यादातर यही लिखते हैं महोदय प्रणाम स्वीकार करें और मेरा भी हाल कुछ वैसा ही है। ये भी कोई बात हुई, गजल कोई लिखे और दिल उनका खराब हो। गजल पढ़कर जनाब कहते हैं मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हो रहा है। अब आप ही बताएं जिस गजल में यादव अपना दर्द बयां करते हैं आर्द्र साहब को भी वैसा ही महसूस होता है।
अब सुना है यादव जी ने मोहब्बत की दुकान भी खोल ली है, जिसमें यह विज्ञापन दिया जा रहा है कि मुहब्बत के दर्द की दवा यहां पर मिलती है। आप अपनी मोहब्बत के दर्द का इलाज यहां पर कराएं।
आर्द्र साहब के अलावा भी कई इश्क मोहब्बत करने वाले बहुत से लोग यहां पर घूम रहे हैं, जिनका ताजा-ताजा ब्रेक अप हुआ है। कुछ एक को तो अभी होश तक नहीं आया, वे तो बेहोशी में ही इश्क के आई सी यू में दाखिल हैं।
मेरा उनसे विनम्र अनुरोध है कि वे एक बार यादव जी के दवाखाने में अवश्य ही तशरीफ लाएं और अपने मर्ज का इलाज करवाएं।
तो आइए मिलते हैं मोहब्बत की दुकान में ---- मोहब्बत के दर्द की दवा पाने के लिए। दवा सिर्फ उन्हीं बिमार आशिकों को मिलेगी जो एडवांस में अपना रजिस्ट्रेशन कराएंगे। क्योंकि हम 'पहले आएं और पहले पाएं' के सिद्दांत में ही विश्वास रखते हैं।
नोट- दुकान खुलने का समय- प्रातः 8 से 9 बजे। ये दुकान सिर्फ रविवार को ही खुलती है।
----- शेष अगले भाग में ---
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