तुम्हारे सामने मैं स्वाभिमान भूल गई,
इश्क़ में कुछ यूँ थी कि पहचान भूल गई।
जो भी था मेरा, मैंने सब कुछ दे डाला,
और तुमने कहा — “तू तो शान भूल गई!”
हर चोट पे बस हँसकर मुस्काई मैं,
तुम बोले — “लगता है, तू जान भूल गई।”
मैंने हर बार माफ़ किया,
तू हँस पड़ा — “ये तो परिणाम भूल गई।
मैंने अपना वजूद रख दिया था तुझपे,
तू हँस पड़ा — “ये तो औकात भूल गई।”
तू ज़हर भी देता तो पी जाती चुपचाप,
तू कह गया — “लगता है स्वाद भूल गई।”
मैंने रो-रोकर तुझसे प्यार माँगा,
तू कह गया — “ये तो सम्मान भूल गई।
मैं चुप रही, जब हर बात चुभी मुझको,
तू हँस पड़ा — “ये तो अपमान भूल गई!
हर बार गिर के उठी थी बस तेरे लिए,
तू कह गया — “शायद ये नुकसान भूल गई।
शारदा’ अब खुद से कहती है हर शाम,
“काश, तुझसे पहले मैं आईना देख लेती।

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




