खिलाड़ी जुटे मैदान में
हर पल नई कहानी बुनते
स्वर्ण की चाह, प्रयास अनगिनत
संघर्ष से अपने पथ चुनते।
पर शिक्षा का क्यों ऐसा द्वार
जहाँ पुरानी गाथा हर बार?
नव विचार को क्यों मिलती हार
नोबेल की ओर न उठते विचार?
शोध की दिशा दिखे न यहाँ
डिग्री में बस अटके जहाँ
गौरव-गरिमा सब खो गए
जीनियस की उम्मीद सो गए।
हे शिक्षक, यह समय पुकारे
विश्वविद्यालय बने सितारे
शोध में नवजीवन धरती पाए
हर कोना आशा से भर जाए।
आओ करें आत्मचिंतन
लौटा दें स्वर्णिम इतिहास
भारतीय ज्ञान की मशाल जलाएं
पाएं नोबेल का ऊँचा प्रकाश।
~ प्रतीक झा 'ओप्पी'
चन्दौली, उत्तर प्रदेश
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