सुख-दर्पण खड़ो दिखै महलों में,दुख-दर्पण खड़ो चौराहे पर।
एक दुल्हन बैठी यान में अंदर, एक खड़ी दिखै चौराहे पर।।
रहीसों की हवेलियां काँचन की,ग्रीवा के भूषण कंचन के।
एक बेटा माँ के कफ़न हेतु ,भिक्षा माँगे खड़ो चौराहे पर।।
दरिद्रों के मसीहा फिरैं संसर्ग में,डींगें हाँकें हमदर्दी की।
ना कोई दया करै दुखियों पर,दरिद्रता बिलखै चौराहे पर।।
भाषण देवें खद्दरधारी परहित के,मत पावें स्व-हुकूमत
----क्रांति स्नेही