"दीप बनो, जो जग को जगाए"
दीप बनो जो राह दिखाए,
जो अंधियारा दूर भगाए।
जलो मगर सेवा के लिए,
ना कि केवल मेवा लिए।
दीप बनो जो सत्य जलाए,
झूठ और भय सब मिट जाए।
जग में जो अन्याय हुआ है,
उस पर सच्चा नाद सुनाए।
दीप बनो जो ज्ञान बढ़ाए,
हर मन में उजियारा लाए।
बिन शिक्षा सब सूना सूना,
दीप बनो जो बुद्धि जगाए।
दीप बनो जो मानवता दे,
भूले को फिर सजगता दे।
हाथ में दीप अगर जलाओ,
तो मन में भी गरमाहट दे।
दीप बनो जो धर्म बताए,
राष्ट्र प्रेम का गीत सुनाए।
अपने भीतर आग जगा लो,
फिर भारत जग में चमकाए।
दीप बनो जो द्वेष बुझाए,
प्रेम का सागर लहराए।
जात, पंथ की दीवारें तोड़ो,
मानवता का दीप जलाए।
दीप बनो जो कर्म बताए,
स्वार्थ नहीं, सद्भाव सिखाए।
भूखे के हिस्से की रोटी दो,
यही असली दीवाली आए।
दीप बनो जो दिल को छू ले,
सत्य की राह में तन झूले।
अंधकार जब घेरे जग को,
तेरा प्रकाश फिर से फूले।
दीप बनो जो नाम न माँगे,
बस सच्चाई के काम माँगे।
और जब कोई पूछे “कौन है वो?”,
जवाब मिले —
“वो एक सच्चा भारत मां का बेटा,
जो हर शब्द में दीप जलाए।”
संदेश:
सच्ची दीवाली वही है,
जहाँ हर दिल में सेवा का दीप जले,
हर मन में सच्चाई की लौ बहे,
और हर इंसान इंसानियत से भरे।
लेखक- अभिषेक मिश्रा 'बलिया'

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




