काश! बचपन की शरारतों का, हिसाब रख लेते..
वो सूखे गुलाब की ख़ुशबू वाली, क़िताब रख लेते..।
जो गर मालूम होता कि, ये बेतकल्लुफ हंसी न रहेगी..
तो आंखों में आया हुआ, ख़ुशी का आब रख लेते..।
आजकल बहुत दफ़ा, बे–वज़ह भी नींद आती नहीं..
इन हालातों का गुमा होता तो, कुछ ख़्वाब रख लेते..।
जो जानते कि, वो आँखें फिरा लेंगे इस तरहा..
हम साकी को कहकर, उम्रभर की शराब रख लेते..।
वो ज़माने–भर में हमारी, नादानियों का जिक्र किया करते हैं..
क्या होता गर हम भी, उनकी बेवफ़ाईयों का हिसाब रख लेते..।
जो मालूम होता, ये रौशन चेहरा छुपा लेंगी जुल्फ़े तेरी..
तो आसमां से गुजारिश कर, हाथों में अपने महताब रख लेते..।
पवन कुमार "क्षितिज"


The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra
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