हाथों में हाथ, चाँदनी रात,
चोरी छिपे हमारी मुलाकात,
बैठ के दोनों यूँ पहरों पहर,
किया करते थे, दिली बात।
देख के आँखों ही आँखों में,
एक-दूजे को बताते हालात,
दुःख चाहे जिसका भी हो,
गले लगकर होती बरसात।
झुकी पलकें, लब खामोश,
महसूस करते थे जज्बात,
कितना सुकूँ भरा ये पल,
प्रेमियों की चाह ये हयात।
देखते रहते थे दोनों बाट,
उसका आना ज्यों सौगात,
साझा करते थे, मनोभाव,
सुना करती सब कायनात।
नसीब नहीं मिला हमारा,
मिलते थे हमारे ख्यालात,
रचा खेल नसीब ने ऐसा,
बिछड़ गए हम अकस्मात।
🖊️सुभाष कुमार यादव