मर्द आएगा,
तो तुम्हारी आज़ादी का नया नाम होगा —
“इज़्ज़त से रहना।”
तुम्हारी हँसी पर
“सीटी” नहीं,
अब नज़रें झुकाने का सर्टिफ़िकेट मिलेगा।
बोलेगा —
“मैं प्रगतिशील हूँ, तुम्हें काम करने दूँगा…”
हाँ, मगर
रसोई का टाइम टेबल भी साथ में होगा।
और अगर तुम
उसकी सफलता में योगदान दो,
तो बोलेगा —
“मेरी बीवी बहुत सपोर्टिव है…”
जैसे तुम कोई ब्लूटूथ डिवाइस हो —
Connect, Charge, Shut Down।
तुम्हारा गुस्सा?
“मूड स्विंग।”
तुम्हारी इच्छा?
“जिद।”
तुम्हारा मौन?
“Drama before periods…”
और तुम्हारा “ना”?
वो बोलेगा —
“प्यार में ना कैसी?”
जैसे Consent का कोई टाइपिंग एरर हो गया हो।
तुम अगर कभी
ज़ोर से हँस दो —
तो वो बोलेगा —
“सबके सामने इतना खुल के मत हँसा करो…”
जैसे हँसी
स्त्री की नहीं,
उसकी ज़िम्मेदारी है।
और तुम्हारी आवाज़…
“धीरे बोलो… पड़ोसी सुन लेंगे…”
जैसे स्त्री का स्वर
सिर्फ़ साड़ी की सिलाई में फिट होना चाहिए।
मर्द आ गया तो क्या हो जाएगा?
तुम ‘हम’ में बदल जाओगी,
और वो…
कभी ‘हम’ का हिस्सा नहीं बनेगा।
फिर भी तुम
उसके गुस्से को “थकान”,
और अपनी थकान को “कमज़ोरी” मानती रहोगी।
तुम रोओगी —
वो बोलेगा, “मैं तो मज़ाक कर रहा था…”
जैसे तुम्हारी भावनाएँ
मेमोरी कार्ड हैं,
जिसे कभी भी Format किया जा सकता है।
और अगर कभी
तुमने उसे छोड़ने की बात कह दी —
तो दुनिया कहेगी,
“इतना अच्छा लड़का था…
तुम्हीं में कोई कमी होगी।”
हाँ बहनजी,
मर्द आ जाएगा —
तो क्या होगा?
कुछ नहीं,
बस तुम्हारा ‘मैं’
इतना छोटा हो जाएगा
कि आईने में भी
“माफ़ी माँगता हुआ” दिखेगा।

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




