कितनी चुनौतियों को पार किया,
कितनी पर अब चलना है,
अब इन तपती राहों में,
सोना बनकर चमकना है,
नाकामी भी सीख है क्या
......उस कामयाबि के मंजिल की,
पग पग धर्ता हूं कांटों पे,
फूलों से अब मिलना है
फूलों से अब मिलना है
जीवन अब बहता पानी है,
क्या मोल है बहती नदियों का,
इक दिन सागर में मिल जाना है,
बस मंजिल को अब पाना है,
बस मंजिल को अब पाना है,
कवि राजू वर्मा
सर्वाधिकार अधीन है