हमारा गांव है जहां,
अनगिनत पेड़ों की छांव है वहां।
पानी लाते सिर पर घड़ा रख
मिलों दूर से,
क्योंकि पानी का बहुत ही अभाव है यहां।
हमारा गांव है जहां,
अनगिनत पशु - पक्षियों का ठहराव है वहां।
हम उन्हें पानी पिलाते, खाना खिलाते,
क्योंकि कहीं चले ना जाए ये हमे छोड़
मिले इन्हें ये सब जहां।
हमारा गांव है जहां,
ना है मोटरगाड़ी वहां।
है वहां तो बस घोड़ा गाड़ी, बैल गाड़ी,
जो ले जाए हमे जाना हो जहां।
✍️ रीना कुमारी प्रजापत