Newहैशटैग ज़िन्दगी पुस्तक के बारे में updates यहाँ से जानें।

Newसभी पाठकों एवं रचनाकारों से विनम्र निवेदन है कि बागी बानी यूट्यूब चैनल को सब्सक्राइब करते हुए
उनके बेबाक एवं शानदार गानों को अवश्य सुनें - आपको पसंद आएं तो लाइक,शेयर एवं कमेंट करें Channel Link यहाँ है

Show your love with any amount — Keep Likhantu.com free, ad-free, and community-driven.

Show your love with any amount — Keep Likhantu.com free, ad-free, and community-driven.



The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra The Flower of WordThe novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

Newहैशटैग ज़िन्दगी पुस्तक के बारे में updates यहाँ से जानें।

Newसभी पाठकों एवं रचनाकारों से विनम्र निवेदन है कि बागी बानी यूट्यूब चैनल को सब्सक्राइब करते हुए
उनके बेबाक एवं शानदार गानों को अवश्य सुनें - आपको पसंद आएं तो लाइक,शेयर एवं कमेंट करें Channel Link यहाँ है

The Flower of Word by Vedvyas MishraThe Flower of Word by Vedvyas Mishra
Dastan-E-Shayara By Reena Kumari Prajapat

Dastan-E-Shayara By Reena Kumari Prajapat

The novel 'Nevla' (The Mongoose), written by Vedvyas Mishra, presents a fierce character—Mangus Mama (Uncle Mongoose)—to highlight that the root cause of crime lies in the lack of willpower to properly uphold moral, judicial, and political systems...The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

                    

अगर महाभारत, महाशांति होता…

अगर उस दिन कर्ण को
जाति नहीं,
हुनर से परखा गया होता…

अगर सभा में चीरहरण नहीं,
स्त्री का सम्मान होता…

अगर हर मौन में
एक आवाज़ सुनी जाती —
तो कुरुक्षेत्र की धरती
लाल नहीं होती,
हरियाली होती।

अगर भीष्म अपने व्रत से पहले,
अपने हृदय की सुनी होती…

अगर द्रोण ने शिक्षा देने से पहले,
धर्म पूछना छोड़ दिया होता…

अगर कृपा ने
अपनी करुणा को
धर्म से ऊपर रखा होता…

अगर कृष्ण ने मुझे
‘सूतपुत्र’ नहीं,
‘पुरुषार्थ’ से देखा होता…

अगर मेरी माँ ने
मुझे जन्मते ही नहीं छोड़ा होता…

तो शायद
इतिहास का हर पन्ना
तलवार नहीं,
प्रेम से लिखा जाता।

तब महाभारत,
महायुद्ध नहीं —
‘महाशांति’ होता।

एक ऐसा युद्ध,
जो कभी लड़ा ही नहीं गया,
क्योंकि हर हृदय में
पहले ही
अहंकार हार गया होता।

न कुरुक्षेत्र बनता,
न कौरव-पांडव बनते…
सिर्फ मनुष्य होते —
और मनुष्यता।

न धनुष चढ़ता,
न गांडीव तनता,
न रथों की ध्वनि होती,
न रक्त की नदी बहती।

तब एक और इतिहास होता —
जिसे युद्ध नहीं,
समझ ने रचा होता।

तब मैं —
कर्ण,
वो पात्र न होता
जिसे तुम बार-बार व्याख्यायित करते हो।

मैं एक पुत्र होता,
एक भाई,
एक मित्र,
एक क्षत्रिय —
जिसे कभी कुछ सिद्ध नहीं करना पड़ता।

अगर महाभारत, महाशांति होता…
तो शायद —
तुम्हारे भीतर भी
अब तक युद्ध न चल रहा होता।

– कर्ण की आत्मा से
उन सबके लिए
जो स्वीकृति से वंचित रह गए।




समीक्षा छोड़ने के लिए कृपया पहले रजिस्टर या लॉगिन करें

रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (1)

+

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

कर्ण की आत्मा से उन सबके लिए जो स्वीकृति से वंचित रह गए behtar sandeshatmak panktiyan, Karn Sanhita m aapne Karn ke Patra ko uski Atma ki Awaz ke Zariye bahut nishtha evam bhedbhaav ke zariye bhasha ke vishudh roop me prastut kiya hai, aapki lekhani laazwaab chalti hai, aap tak saadar pranam pahuche adarneeya.

कविताएं - शायरी - ग़ज़ल श्रेणी में अन्य रचनाऐं




लिखन्तु डॉट कॉम देगा आपको और आपकी रचनाओं को एक नया मुकाम - आप कविता, ग़ज़ल, शायरी, श्लोक, संस्कृत गीत, वास्तविक कहानियां, काल्पनिक कहानियां, कॉमिक्स, हाइकू कविता इत्यादि को हिंदी, संस्कृत, बांग्ला, उर्दू, इंग्लिश, सिंधी या अन्य किसी भाषा में भी likhantuofficial@gmail.com पर भेज सकते हैं।


लिखते रहिये, पढ़ते रहिये - लिखन्तु डॉट कॉम


LIKHANTU DOT COM © 2017 - 2025 लिखन्तु डॉट कॉम
Designed, Developed, Maintained & Powered By HTTPS://LETSWRITE.IN
Verified by:
Verified by Scam Adviser
   
Support Our Investors ABOUT US Feedback & Business रचना भेजें रजिस्टर लॉगिन