अब
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कइसन हाल भईल बा देखीं
अब घरवा संसार के।
भाई-भाई के शक से देखे
धज्जिया उड़ल प्यार के।
कवनो लाज-बीज नाही बाचल ,
संस्कार मुर्झा गईल ।
घरहीं में बा घूसल दुश्मनी ,
गजब समइआ आ गईल।
बाप मांई समझा के हारल
रोए पूका फार के।
कइसन हाल भईल बा देखीं,
अब घरवा संसार के।
भाई-भाई के शक से देखे,
धज्जिया उड़ल प्यार के।
इक ज़माना उहो रहल,
भाई भाई जब छोट रहे।
संघे खेलल खाइल संघे ,
मन में न कवनो खोट रहे।
एक के अगर चोट लगे तऽ
रोअत दोसरा के ठोढ़ रहै।
संघे घुमल संघे सुतल ,
संघही साझ आ भोर रहे।
आखिर प्यासा खोजे मनवा
उहे पुरनका प्यार के।
कइसन हाल भईल बा देखीं,
अब घरवा संसार के।
भाई-भाई के शक से देखे ,
धज्जिया उड़ल प्यार के।
-'प्यासा