बस तू बीज बोये जा
हमें इन्तजार है बारिश का
पंजर ज़मीन तप रही है
लिए बीज को आगोश में।
तूने काम ऐसा कर दिया
न बात थी हमारे बस की
आगे भी तेरे कृपा के मोताज
न बात है हमारे बस की।
यह है बादलों की काली छाया
यह भी वक्त गुजर जायेगा
तेरे बाँहों के आँचल तले
घटाओं का काफिला बह जायेगा।
यूँ तो इन्तजार किस बात का
भरा है घर-आँगण खुशियों से
फिर भी एक तीर जो समय का
छिन्न-विच्छिन्न कर देता है भवन को।
कभी ऐसा भी होता है
वक्त गुजरता नहीं अँधेरे में
इसका कोई अंदाज़ नहीं
हम कितनी दूर प्रकाश से।
बस हम ढूंढ रहे है अँधेरे में
लिए रोशनी का ख्वाब आँखों में
तू मिलेगा जरूर आशा है
सत्य से हम बाहर नहीं यह विश्वास है।
न तड़फ की जरुरत है न अभिलाषा की
तू है यह धारणा काफी है
बस तू बीज बोये जा
हमें इन्तजार है बारिश का।
✍️ प्रभाकर, मुंबई ✍️