एक घूंट अंधेरा
"दीदी, घर पहुँचते ही फ़ोन करूँगी,"
उसने कहा था,
गली के उसी मोड़ से गुज़रते हुए
जहाँ हर ईंट ने उसकी परछाईं संजोई थी।
काँधे पर बैग की हल्की थपकी,
हवा से लहराता गुलाबी मखमली दुपट्टा,
और होंठों पर वो हँसी,
जिसमें बेफ़िक्री की महक थी।
पर किसी की आँखों में
उसकी हँसी एक अपराध थी।
एक शोला,
जिसे बुझाना ज़रूरी था।
वो रुकी,
मोबाइल निकाला,
और तभी—
एक घूंट अँधेरा
उसके चेहरे पर उंडेल दिया गया।
फिर... सन्नाटा।
हवा थम गई,
रात स्थिर हो गई।
सिर्फ़ जलन थी—
रूह तक उतरती,
हड्डियों तक फैलती,
साँसों को राख में बदलती।
चमड़ी सुलगने लगी,
मांस झुलसकर उतरने लगा,
हड्डियाँ चटकने लगीं।
आँखें खुली थीं,
पर अब दुनिया एक धुँधला गड्ढा थी।
"पानी! कोई पानी लाओ!"
कोई चिल्लाया।
पर क्या पानी उस आग को बुझा सकता था
जो उसकी आत्मा तक उतर चुकी थी?
उसका बदन काँपता रहा,
पर ज़िंदगी थम गई।
वो धधकती रही—
पर एक शब्द भी न निकला।
बाज़ारों में हलचल थी,
खबरों में शोर था।
पर उस सड़क पर,
जहाँ उसका चेहरा गलकर बह रहा था,
दुनिया ने नज़र फेर ली।
"तेज़ाब फेंका गया!"
"इंकार की सज़ा!"
"दोषी अज्ञात!"
पर कोई नहीं बताएगा
कि उस रात उसकी माँ ने आईना तोड़ दिया था।
क्योंकि अब आईना भी
उसे पहचानने से इनकार कर चुका था।
अब उसका नाम मिट चुका था।
उसकी पहचान एक ज़ख़्म में सिमट गई थी।
आईने उसकी शक़्ल से डरते थे,
और लोग उसकी मौजूदगी से।
वो जो कभी रंगों से प्रेम करती थी,
अब हर रंग उसे दहकती हुई लपट लगता था।
नीला आकाश—
जो कभी स्वच्छंदता का प्रतीक था,
अब उसके लिए
एक जलता हुआ कैनवास बन चुका था।
अब उसकी तस्वीरें मिटा दी गईं।
उसका नाम बदल दिया गया।
"एसिड सर्वाइवर,"
जैसे वो अब एक इन्सान नहीं,
सिर्फ़ एक हादसा थी।
पर उसने हार नहीं मानी।
हर अदालत में गिड़गिड़ाई,
हर दहलीज़ पर माथा टेका,
हर दरवाज़े पर दस्तक दी।
"मुझे इंसाफ़ चाहिए।"
पर न्याय के पहिये
हमेशा धीमे चलते हैं,
और कभी-कभी
रुक भी जाते हैं।
वो लड़ती रही—
पर हर तारीख़ एक नया धोखा थी।
हर गवाह एक बिका हुआ सौदा।
हर आशा एक बुझता हुआ दीपक।
साल बीतते गए,
चेहरे पर दर्द के धब्बे गहरे होते गए,
पर उसके सवाल
आज भी वही थे—
"मुझे क्यों जलाया?"
"मेरी गलती क्या थी?"
पर कोई उत्तर नहीं आया।
सिर्फ़ खामोशी।
और फिर..
उसने आख़िरी बार आईना देखा—
जो अब भी टूटा हुआ था,
जैसे उसकी आत्मा।
उसने कलम उठाई,
काग़ज़ पर लिखा:
"मैं मर रही हूँ, पर दोषी ज़िंदा हैं।
मेरे सपने राख हो गए, पर दुनिया वैसी ही चल रही है।
मैं बस एक सवाल छोड़कर जा रही हूँ—
मुझे क्यों जलाया गया?"
फिर, उसने एक आख़िरी साँस ली,
और ख़ुद को उस न्याय के हवाले कर दिया
जो ज़िंदगी में उसे न मिला।
अगले दिन,
समाचारों में उसका नाम चमका—
"तेज़ाब पीड़िता ने आत्महत्या की!"
चंद दिनों तक बहसें हुईं,
कुछ मोमबत्तियाँ जलाई गईं,
कुछ नेता सहानुभूति में डूबे बयान देकर चले गए,
फिर दुनिया आगे बढ़ गई।
फिर वही सड़कें,
फिर वही मोड़,
फिर वही एक और लड़की
जो अकेली घर जा रही थी।
किसी की आँखों में
फिर वही शोला जल रहा था।
और किसी और के चेहरे पर
फिर एक घूंट अँधेरा उंडेल दिया गया।
दुनिया फिर नहीं रुकी।
क्योंकि दुनिया कभी रुकती नहीं।