👉 बह्र - बहर-ए-हिन्दी मुतकारिब मुसद्दस मुज़ाफ़
👉 वज़्न - 22 22 22 22 22 2
👉 अरकान - फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़े
दिल का हर पैग़ाम लिखा है गज़लों में
तुमको सुब्ह-ओ-शाम लिखा है गज़लों में
तुमने तो बस ज़िक्र किया मश्हूरों का
हम ने हर गुमनाम लिखा है गज़लों में
बाँटे गम अब कौन किसी का दुनिया में
सो अपना आलाम लिखा है गज़लों में
टूटे दिल का मेरे तुम जज़्बा देखो
जज़्बा-ए-नाक़ाम लिखा है गज़लों में
आग़ाज़-ए-उल्फ़त के लिखे किस्से सबने
और हमनें अंजाम लिखा है गज़लों में
एक नशा है तेरी मस्त निग़ाहों में
हमनें इनको ज़ाम लिखा है गज़लों में
'शाद' के दिल को करके जो नाशाद गई
उस लड़की का नाम लिखा है गज़लों में
©विवेक'शाद'