आस भी शिव हैं — जब टूटी उम्मीदों की राख से कोई फिर उठता है, बिना किसी कारण के…
जब साँस चलती है सिर्फ़ भरोसे पर —
और ज़िन्दगी कहती है —
“बस एक बार और कोशिश कर!”
वहाँ… शिव हैं!
हाँ!
वो ही शिव हैं!
पास भी शिव हैं —
जब तंत्र नहीं, मन त्रस्त होता है…
जब बाहर भस्म है, पर भीतर
अब भी कोई मौन जलता है…
जहाँ न कोई मंदिर, न कोई दीया
फिर भी कोई आँखें मूंदकर कह उठती है —
“ॐ नमः शिवाय!”
वो जो स्पर्श में नहीं, पर स्पंदन में है,
वो जो दृश्य नहीं, पर दृष्टि में है —
वो ही पास वाले शिव हैं!
और विश्वास?
वो तो शिव का तांडव है!
जब हारी हुई स्त्री कहती है —
“मैं अब भी जीऊँगी!”
जब टूटा हुआ पुरुष कहता है —
“मैं फिर खड़ा होऊँगा!”
जब बच्चा भूख में भी माँ को देख मुस्कुराता है
वहाँ शिव की मुस्कान है…
वो अंधकार में भी
जो सूर्य का स्वप्न देखे,
वो ही शिव है — विश्वास का आकार!
क्या तूने देखा है कभी शिव को
जटाओं में उलझा हुआ समय?
कंठ में ठहरा हुआ विष —
फिर भी मौन!
फिर भी शांति!
और हम?
थोड़ी सी असुविधा में ईश्वर को कोसते हैं!
शिव तो वो हैं —
जो अपने भीतर मृत्यु को रखकर
जीवन बाँटते हैं…
तो सुनो —
शिव कोई मूर्ति नहीं,
शिव एक स्थिति है —
जहाँ तू हार कर भी, हारता नहीं,
जहाँ तू टूटकर भी, झुकता नहीं,
जहाँ तू अकेला होकर भी, डरता नहीं!
जहाँ तू कहे —
“मैं नहीं हूँ, पर वो है!”
वहीं से शुरू होता है —
शिवत्व!
इसलिए —
जब टूटे, तो शिव को पुकारना नहीं,
बस शिव हो जाना!
क्योंकि —
आस भी शिव है, पास भी शिव है, और विश्वास भी शिव है…
बाक़ी सब तो केवल परीक्षा है…

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




