सब कुछ पाकर भी आस बाक़ी है
समंदर पीके भी तो प्यास बाक़ी है
लुट गया सब कुछ भरे बाजार मेरा
दिल का होना पर गुलजार बाक़ी है
चुक गए तीर तरकश हो गया खाली
उसे पता नहीं अभी शिकार बाक़ी है
मुस्कान के सब मायने बदल गए हैं
लगता है कोई जैसे खिताब बाक़ी है
एक मुद्दत से खडा है दास दौराहे पे
कहाँ जाएँ ये मिलना जवाब बाक़ी है ||