इस कुरूक्षेत्र के प्रांगण में ,पांचजन्य के वादन में l
इस धर्मक्षेत्र के संगम में ,इस कर्मभूमि के आंगन में l
उस पांचाली के आंचल में , वृकोधरण के भीषण प्रण में l
धर्मराज के गौरव हित , हे! पार्थ तुम्हें अब उठना होगा l
ललचायी आँखें देख रही , कोमल कलियां है टूट रही l
खड़ा हस रहा दुशासन , धृतराष्ट्र सभा फिर लगता सजी l
इस युग की कैसी लीला है , संजय भी इसका अंधा है l
अब आशा एक है तुमसे ही , हे! व्यास तुम्हें लिखना होगा l
इस परमभूमि के गोदी में , इस तपोभूमि के दामन में l
इन कुचक्रो के घेरे में , इन बीहड़ घने अँधेरों में l
इस मानवता की खातिर अब , निज स्वाभिमान की रक्षा हित l
इस युग के नव आह्वाहन में , अभिमन्यु अब चलना होगा l
सत्य के हेतु निकलना होगा , परमारथ पथ चलना होगा l
राजभोग ठुकराना होगा ,
कानन की तरफ निकलना होगा l
इस द्वेष घृणा को टलना होगा ,
प्रेम पुष्प को खिलना होगा l
मानवता के पुन: सृजन को ,
हे !राम तुम्हें अब उठना होगा l
तेज प्रकाश पांडे
[सतना मध्य प्रदेश]