"ग़ज़ल"
उनवान क्या रक्खें हम अनाम ज़िंदगी के!
राख नहीं तो ख़ाक है अंजाम ज़िंदगी के!!
चाहे जितना तुम कर लो एहतमाम ज़िंदगी के!
हैं बुढ़ापा और लाचारी इख़्तिताम ज़िंदगी के!!
ये बचपन लौटता है न जवानी लौटती है!
कभी लौटते नहीं सुबह-ओ-शाम ज़िंदगी के!!
ये ज़िंदगी जैसी भी है मिलती है बस एक बार!
करना पड़ता है सब को एहतराम ज़िंदगी के!!
अगर दिल नहीं लगाया तो फिर क्या किया यारों?
प्यार मोहब्बत इश्क़ हैं इन'आम ज़िंदगी के!!
शिद्दत से जियो मुझ को अगर जीना चाहते हो!
हम सब के लिए है यही पैग़ाम ज़िंदगी के!!
सफ़र ख़्वाब उम्मीद या एक अन-सुलझी पहेली!
'परवेज़' न जाने कितने हैं नाम ज़िंदगी के!!
- आलम-ए-ग़ज़ल परवेज़ अहमद
© Parvez Ahmad
The Meanings Of The Difficult Words:-
*उनवान = शीर्षक (title); *अनाम = नाम-रहित (nameless); *ख़ाक = मिट्टी (dust);