तुम्हें पाने की चाहत और खोने के डर ने,
कोलाहल मचा रखा है मेरे भीतर के शहर में।
तुम पढ़ोगी तो तुम्हें महसूस होगा यकीनन,
दिल निकाल कर जो रख दिया इस बहर में।
यूँ तो निकल आया हूँ अब तक हर भँवर से,
मैं डूबा भी तो कहाँ तेरी आँखों के समंदर में।
हो अगर प्रेम कृष्ण दीवानी मीरा के जैसा,
प्राण निकाल सके इतना दम कहाँ ज़हर में।
🖊️सुभाष कुमार यादव