ओ बेवफ़ा, आईना निकली —
जिससे भी नज़र मिली, वफ़ा निकली।
हमने जिसे चाहा दिल से उम्र भर,
हर एक सूरत में खता निकली।
आशियाँ समझा था जिसको सांसों का,
वो भी एक रात की हवा निकली।
लब खामोश थे, पर आँखें रोती रहीं,
हर ख़ुशी भी जैसे सज़ा निकली।
हमने तस्वीर बना ली थी तुझमें,
पर हक़ीक़त तो धुंधला सा धुआँ निकली।
जिस राह पर तेरे ख्वाब संजोए थे,
वो रहगुज़र भी बेवजह निकली।
तेरी मुस्कान में ढूँढते रहे हम सुकून,
अंदर से तू भी थकी-थकी निकली।