*हमारी ज़िन्दगी परिस्थितियों से परेशान नहीं होती उसके पीछे का कारण ,उसके परिणाम को सोच कर ज़्यादा दुखी होती है।
*परिणाम सुखद भी रहा हो तब भी यही सोचना अगर ऐसा हो जाता तो क्या होता ?
*नया घर खरीदा तो ये सोच कर परेशान रहना कि अभी तो लोन चल रहा है ,ब्याज देना है ,पर वो तो ख़रीदने से पहले भी पता था ,सब समझ कर लिया फिर क्यों?
*प्रमोशन मिली नौकरी में तो ये सोचना कि अब जिम्मेदारी बढ़ेगी तो अपने लिए समय नहीं होगा,तो उन्नति नहीं चाहिए थी क्या ?
*एक्सीडेंट हो गया सब ठीक रहा ,बचाव हो गया पर गाड़ी ख़राब हो गई तो भी दुखी ,आपको अपने बचने की ख़ुशी नहीं क्या?
*हर छोटी से लेकर बड़ी कोई भी कैसी भी बात क्यों न हो ,हम सब्र नहीं करते ।हमारे मन के दुखी होने का सबसे बड़ा कारण हम ख़ुद ही हैं ।
*क्योंकि पुरानी बातों से सीख कर आगे चलना चाहिए ,उन्हें गाँठ बाँध कर साथ नहीं ले जाया जाता ।
*अपने आपको खुश और सकारात्मक सोच के साथ संवारेंगे तो ही दूसरों को भी खड़ा कर पाएँगे ।
*जो हो गया वो वापिस नहीं आया करता इसलिए उसके लिए दुःख नहीं मनाना बल्कि हर परस्थिति का सामना कर जो है उससे अपना आज और कल बनाना है।
*ज़िन्दगी को एक चैलेंज लेकर ही जीना चाहिए और ऐसा कुछ जो हम न कर सकें ,यही सोच मन में ठान लेनी चाहिए जब तक साँसें हैं ।
वन्दना सूद