हमने गफलत में जाने, दुनिया को क्या समझ लिया..
अपनी खातिर हाथ उठने को, दुआ समझ लिया..
खुद की हर इक बात पर, दांव लगाया मैंने..
ज़िंदगी को जाने कैसे, जुआ समझ लिया..।
वो तो मुकुराये थे, अपनी ही खुदी में सनम..
और हमने उनसे, इश्क़ हुआ समझ लिया..।
उनके बगैर मुस्कुराने को भी, जद्दोजहद है अब तो..
हम करते भी क्या, दिल ने इसे एक हादिसा समझ लिया..।
गम छुपाने की तेरी आदत से, वाक़िफ थे हम..
आंखे खुश्क थी, मगर आंसू बहा समझ लिया..।
पवन कुमार "क्षितिज"