"शाकाहार"
हरी पत्तियाँ, फल-फूल प्यारे,
प्रकृति के ये उपहार हमारे।
न हिंसा हो, न पीड़ा हो,
हर प्राणी से प्रेम बना रहे वो।
थाली में हो दाल-सब्ज़ी,
चावल, रोटी, मीठी रबड़ी।
शाकाहार से शक्ति आए,
तन भी स्वस्थ, मन भी गाए।
पशु-पक्षी भी जीवन पाएं,
हमसे डरकर न भागें जाएं।
दया, करुणा, प्रेम की राह,
यही तो सच्चा जीवन-प्रवाह।
न मांस, न मछली, न अंडा,
सिर्फ सादा भोजन चंदा।
धरती हँसे, आकाश नाचे,
जब हर दिल में दया साचे।
शाकाहार है नीति पुरानी,
संतों की ये अमर कहानी।
आओ मिलकर प्रण ये लें,
प्रकृति संग जीवन ढालें।
अनामिका दूबे "निधि"