New रचनाकारों के अनुरोध पर डुप्लीकेट रचना को हटाने के लिए डैशबोर्ड में अनपब्लिश एवं पब्लिश बटन के साथ साथ रचना में त्रुटि सुधार करने के लिए रचना को एडिट करने का फीचर जोड़ा गया है|
पटल में सुधार सम्बंधित आपके विचार सादर आमंत्रित हैं, आपके विचार पटल को सहजता पूर्ण उपयोगिता में सार्थक होते हैं|

Show your love with any amount — Keep Likhantu.com free, ad-free, and community-driven.

Show your love with any amount — Keep Likhantu.com free, ad-free, and community-driven.



The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

New रचनाकारों के अनुरोध पर डुप्लीकेट रचना को हटाने के लिए डैशबोर्ड में अनपब्लिश एवं पब्लिश बटन के साथ साथ रचना में त्रुटि सुधार करने के लिए रचना को एडिट करने का फीचर जोड़ा गया है|
पटल में सुधार सम्बंधित आपके विचार सादर आमंत्रित हैं, आपके विचार पटल को सहजता पूर्ण उपयोगिता में सार्थक होते हैं|

The Flower of Word by Vedvyas MishraThe Flower of Word by Vedvyas Mishra
Show your love with any amount — Keep Likhantu.com free, ad-free, and community-driven.

Show your love with any amount — Keep Likhantu.com free, ad-free, and community-driven.

Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

आदमी ना रहा घर का ना घाट का...

रिश्तों की भंवर में उलझकर
इंसान इंसान ना रहा।
पिता को पुत्र तो कहीं
पुत्र को पिता खा रहा है।
ना जज़्बातों की कदर
ना इज़्ज़त ना प्यार
बस चंद सिक्कों की खनक पर
नाचता हर परिवार।
यहां सब बेमानी है
किसी के रहने
ना रहने
आने या जाने से किसी को
घंटा ना फ़र्क पड़ता है।
हर कोई यहां अपनी हीं गुमान में
जिता है।
यही कारण है कि आजकल नाइंटी परसेंट
शादियों के कुछ सालों बाद हीं कट रही तलाक़ की फीता है।
जो सामाजिक ताने बाने के साथ साथ
न्यायिक सिर दर्द बन रहें हैं।
रिश्तों की नज़ाकत को कुछ भी ना समझ रहें हैं ।
बस अपनी डफली अपना अलग हीं आलाप जप रहें हैं।
रिश्तों की भंवर में उलझकर हर रोज़
लोग मर रहें हैं।
हर तरफ बेचैनी
दर्द
आवारापन
बंजारापन
हिकारतें बढ़ रहीं हैं।
जो लोगों की हँसी खुशी को
लील रहीं हैं।
क्या क्या ना कर रहीं हैं।
रहें नहीं लोग जिनमे बर्दाश्त की
शक्ति थी
परिवार के प्रति प्यार
सम्पूर्ण समर्पण थी।
यहां बेटा बाप की नहीं सुनता
और बाप अपने बाप का।
आपस में सब लड़ रहें है
घर टूट रहें जनाब का।
हाय क्या हो रहा इन रिश्तों को
गौर से देखो इन रिश्तों को..
आदमी ना रहा घर का ना घाट का..
आदमी ना रहा घर का ना घाट का..




समीक्षा छोड़ने के लिए कृपया पहले रजिस्टर या लॉगिन करें

रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (3)

+

Devender Kumar said

great lines on social changes

Bhushan Saahu said

Waaah...kmaal kar dia. Behatrin

Keshav Atri said

Bilkul thik kha aapne. आदमी ना रहा घर का ना घाट का.. kaash koi samjh jaye.

कविताएं - शायरी - ग़ज़ल श्रेणी में अन्य रचनाऐं




लिखन्तु डॉट कॉम देगा आपको और आपकी रचनाओं को एक नया मुकाम - आप कविता, ग़ज़ल, शायरी, श्लोक, संस्कृत गीत, वास्तविक कहानियां, काल्पनिक कहानियां, कॉमिक्स, हाइकू कविता इत्यादि को हिंदी, संस्कृत, बांग्ला, उर्दू, इंग्लिश, सिंधी या अन्य किसी भाषा में भी likhantuofficial@gmail.com पर भेज सकते हैं।


लिखते रहिये, पढ़ते रहिये - लिखन्तु डॉट कॉम


© 2017 - 2025 लिखन्तु डॉट कॉम
Designed, Developed, Maintained & Powered By HTTPS://LETSWRITE.IN
Verified by:
Verified by Scam Adviser
   
Support Our Investors ABOUT US Feedback & Business रचना भेजें रजिस्टर लॉगिन