इश्क,दोस्ती,मतलब देखा...
इस जमाने मे हमने बहुत कुछ देखा...
लोग देखे लोगों का ढंग देखा...
यहां हर एक का बदला हुआ रंग देखा...
कही घाव, कही मरहम, कही दर्द, देखा...
यहां अपनों के हाथ मे खंजर देखा...
कभी रात, कभी दिन देखा...
कही पत्थर का दिल, तो कही दिल पर पत्थर देखा...
कभी हकीकत, कभी बदलाव देखा...
यहां हर चेहरे पर दोहरा नकाब देखा...
चाहत, जिस्म, फिर धोखा देखा...
यहां मोहब्बत के नाम पर सिर्फ मौका देखा...
जीते-जी बस यही देखना बाकी था, अंश...
एक उसे भी, किसी और का होते देखा...
----सुमित तिवारी