उसे कैसे भुलाएँ जब हर आह में वो रहता है,
साया बन हर राह में भीगे पल-सा वो रहता है।
हमारी नींद में अब भी वही मंज़र रहता है,
कोई चेहरा नहीं, बस उसी का असर रहता है।
न उस की बात बुझती है, न चाहत दम तोड़ती,
हमारे दिल में कोई ज़ख़्म रोज़ तर रहता है।
जो लम्हा कट गया उसके बग़ैर, कटता नहीं,
वही लम्हा हर घड़ी की तरह अजर रहता है।
हज़ारों बार चाहा उसे दिल से जुदा करना,
मगर दिल को उसी की क़सम का डर रहता है।
‘राशा’ जो भूलना चाहे भी, तो क्या कर ले,
वो अपनी रूह में कुछ इस तरह सजग रहता है।
-इक़बाल सिंह“ राशा“
मनिफिट, जमशेदपुर, झारखण्ड