(बाल कविता)
धीरे से आ जाती नींद
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रोज़ रात में आती नींद ।
आंखों को भा जाती नींद ।।
मम्मी लोरी गाती हैं जब
धीरे से आ जाती नींद ।
थक कर लेटो अगर कभी तो
लगता पैर दबाती नींद ।
परेशानियों में जाने क्यों
नयनों से उड़ जाती नींद।
शोर शराबा रहे अगर तो
शीघ्र नहीं फिर आती नींद ।
अगर जागना पड़े रात भर
दिन में बहुत सताती नींद ।
कमज़ोरी बीमारी में भी
सबसे ज्यादा भाती नींद।
नानी नाना दादी बाबा
जैसी है दुलराती नींद ।
कभी भूतिया फिल्मों जैसी
हरपल बहुत डराती नींद ।
मनचाही दुनिया में लाकर
सबको सैर कराती नींद ।
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~राम नरेश 'उज्ज्वल'
उज्ज्वल सदन
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