सत्य यहीं है……
अक्सर मैं सोचतीं हूँ
आख़िर मैं कौन हूँ
अनंत समय से हूँ
या फिर आदिकाल से हूँ
समझ कहाँ पाती हूँ
आती जाती हवा का झोका हूँ
या थमा हुआ तूफ़ा,तकरार में हूँ
सागर की उफ़ान, या उभरा हूँ
बिन किनारे पहाड़ियों से टकराती हूँ
कहाँ से आई ,जाऊं कहाँ न जानु हूँ
'प्रतिष्ठा' ढूँढू या, 'पतिक्षा' में हूँ
अंत कब होगा सत्य से पूछूं हूँ
क्यों की.. सत्य यहीं है,'
जाना तय है, फिर भम्रमें "मैं"क्यों हूँ….???