अपने आँगन से खुला आसमान देखता।
रोशनी में परछाई का संयम महान देखता।।
जैसी जरूरत अपनी इस्तेमाल कर लिया।
कभी चारपाई लगाकर आसमान देखता।।
आग चूल्हे में जले धुँआ आकाश को चले।
हाथ की रोटी दाल में पूरा जहान देखता।।
दरवाजे के बाहर बच्चो का खूब शोरगुल।
शाम होते ही 'उपदेश' सब वीरान देखता।।