हलकी सी हवा से भी जीर्ण पत्ते गीर जाते है
तूफान में तो पेढ पौधे भी उखड जाते है
जीवन की डोर कच्ची है
प्रलय की अग्नि में सब भस्म हो जाता है
ऐसा कोई साधन नहीं है
यहाँ कुछ अमर रह जाय
सबकी अपनी उमर है
अंत तो सबका है
हे भगवंत..
तुम अनंत।
✍️ प्रभाकर, मुंबई ✍️