इसे रेतीला शहर कहूं ,
या ईश्वर की महर कहूं
हो इस पर न्योछावर झाके,
जिसे रेतीला शहर कहूं
यहां पूर्व में तोलियासर भेरू
दक्षिण में लखासर है
विपदा हरे मंगल करें ,
लगाता नये पर(पंख) है
यह भूमि रेतीली और कंपन करने वाली है ,
यह धरती शत-शत वीरों के पूरे सृप्न करने वाली है
1880 में डूंगर सिंह ने कीर्तिमान रचाया था,
चुन चुन कर उत्तम मोती श्री डूंगरगढ़ बसाया था।
यह भूमि का टुकड़ा नहीं यह आकांशाओं का शहर है,
पर्यावरण इतना अच्छा या पानी की भी महर है
बरसाती आंखों के बादल तल छट बरसे इस भूमंडल ,
यह थार परिधि को घेरे हैं, बसता सीने में मेरे हैं,
इस रेतीली नगरी में साहित्य सृजन कर जाना है,
पेड़ लगाएं वृक्ष बचाएं इतना तजन(अर्पण) कर जाना है
जब सारा बीकानेर जल से हो जाता उन्मुख है,
ऐसी घोर गर्मी में भी श्री डूंगरगढ़ में पानी का सुख है।
....मेरा रेतीला शहर श्री डूंगरगढ़
----अशोक सुथार