क्या हार मान लूं मैं
चाहे संसार सारा विरुद्ध हो ,
चाहे किस्मत वृद्धि हो,
रुक गया तो लडूंगा कैसे ,
सफल हो गया तो पडूगा कैसे।
पर गिरना पडना तो लगा ही रहता है,
शांत शांत न झरना बहता है,
नदी के जल को देखो क्या वह भी शांत रहता है,
नहीं नहीं क्या सागर का पानी चुप चाप बहता है
मुसीबतें तो आएगी,असफलता सर दुखाएगी ,
यूं भटकते भटकते किसी दिन वह मंजिल भी मिल जाएगी,।
बाधाए मुझे गेरेगी ,
विपदाए भी मंडराएगी ,
भूपति भी नर पती कहलाएगा,
युग ऐसा चंचल आएगा
सफलता से एक ही ईच से चुका हूं ,
क्या अभी मेरी उम्र नहीं,
अभी तो बस सफलता का भूखा हूं
आने दो जितनी बाधाए आए,
अंबर टूट आसमान बन जाए,
खुलेंगे कपाट मेरी किस्मत के,
कभी अच्छे दिन भी आएंगे,
क्यों हार मान लूं मैं ,
मेरी जीत का इंतजार मेरी मा कर रही है,
याद है मुझे की कि कुएं पर मेरी बहन पानी भर रही है,
लेकिन अंधेरा हटेगा ,
नया सपना खेलेगा ,
ऐसे ही चलते-चलते एक दिन रास्ता मिल जाएगा
क्या हार कर हार मान लूं या जीवन की संपूर्ण राह जान लु
चलो अब जाता हूं कवि हु किसी के मन को भाता हु
----अशोक सुथार