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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

माँ भगवती शारदा के दरबार में परमात्मा श्री कृष्ण का भागवत कथा में प्रकटोत्सव



माँ भगवती शारदा कन्या देवी सुदामापुर सतना मध्य प्रदेश में आचार्य श्री कृष्ण चैतन्य के मुखारविन्दो से ज्ञानामृत और प्रेमामृत की वर्षा -

वसुदेव सुतं देवं कंस चाणूरमर्दनं | देवकी परमानन्दं कृष्णं वंदे जगद्गुरुं ||

आज माँ भगवती शारदा के दरबार में परमात्मा श्री कृष्ण का भागवत कथा में प्रकटोत्सव

परमात्मा से पहले योगमाया जगत जननी विंध्य पर्वत निवासनि विंध्यवासनि का दिव्य अवतार दिखा माँ भगवती प्रकृति स्वरूपा हैं परमात्मा की असीम ऊर्जा जब संसृति के विकासार्थ प्रकीर्णित होती है तो देवी योगमाया प्रकृति के सृजन के लिये विभिन्न रूपो में प्रकट हो परमात्मा की ऊर्जा से सृष्टि की रचना करती हैं माँ योगमाया की सुन्दर स्तुति के साथ -

जय जग कल्याणी , मात भवानी ..जय महामाया जय नारायणी
देवी भवानी सुर कल्याणी ,
जय जग रानी , त्वम् वरदानी l
प्रकृति स्वरूपा ,रूप अनूपा ,
संतन कल्याणी , विन्ध्य निवासनि

आचार्य श्री ने बताया -परमात्मा तो सर्वव्यापि है , सत्य और सनातन है ,
वह न तो कहीं आता न जाता वह भक्त ह्दय वाशी है -

बिनु पद चलइ सुनइ बिनु काना। कर बिनु करम करइ बिधि नाना॥
आनन रहित सकल रस भोगी। बिनु बानी बकता बड़ जोगी॥

निर्गुण निराकार ब्रह्म - जब योगियो द्वारा पुकारा जाता है , तो महाकुंडली बनकर उनसे साक्षातकार करता है , ज्ञानियो द्वारा पुकारे जाने पर अद्वैत ज्ञान बनकर उनके ज्ञान में समाहित हो जाता है , और जब परमात्मा प्रेम से भेंट करता है तो ब्रज गलियों में नाचने लगता है .....

ऐसे ही परमतत्व श्री कृष्ण प्रेमावतार रूप मथुरा में दृश्यमान हुए और फिर संतो की पीड़ा हरण करते हुए उन्हें प्रेमामृत का पान कराते हुए गीता ज्ञान देकर जगत का कल्याण किया

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत:। अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्ll

राघवेंद्र पांडे समिति के सभी सदस्यों शेषमन अग्निहोत्री, ऋषिराम शुक्ला, रामसखा त्रिपाठी, अनूप सुखेंद्र वेदप्रकाश द्वारा भक्तों का दिव्य स्वागत किया गया

आचार्य कृष्ण चैतन्य जी महाराज
[श्रद्धालु मंडली]




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (1)

+

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

योगमाया जगत जननी विंध्य पर्वत निवासनि विंध्यवासनि - प्रणाम स्वीकार करें - हे सबके ईश्वर प्रणाम स्वीकार करें

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