"दर्द"
सबके होते हुए भी,
कभी-कभी कितने अकेले रह जाते है हम
कहने को मन में है कितना कुछ,
फिर भी इतने खामोश रह जाते है हम,
भर जाती है जब-जब आंखें,.तो अपनी नजरें चुराते है हम,
दिल में अपना दर्द छुपा कर,
अक्सर ही मुस्कुराते है हम ।
ये दर्द तो आंसू देता है,
पर दामन थामे रहता है
खुशियाँ बेशक थोड़ा हंसाती हैं
पर आख़िर आंसू ही देकर जाती हैं।
चेहरे की हँसी दिखावट सी हो रही है,
असल ज़िन्दगी भी बनावट सी हो रही है
पहले ऐसी थी नहीं जैसी हूं आजकल ,
मेरी कहानी कोई कहावत सी हो रही है
दूरी बढ़ती जा रही मंज़िल से मेरी,
चलते-चलते भी थकावट सी हो रही है
शब्द कम पड़ रहे है मेरी बातों में भी,
ख़ामोशी के जैसे मिलावट सी हो रही है।
रचनाकार-पल्लवी श्रीवास्तव
ममरखा, अरेराज.. पूर्वी चंपारण (बिहार )