धीरे धीरे देश क़र्ज़ में दब रहा है
देश भक्त तिजोरियां भर रहा है
भूत काल खोद कर क्या मिलेगा
देश वर्तमान में क़र्ज़ से चल रहा है
कंपनियों का भविष्य चमक रहा है
पार्टियों का खाता भरता जा रहा है
भूत काल में कौन सा तलिस्म मिलेगा
देश वर्तमान में क़र्ज़ से चल रहा है
देश भक्तों में इजाफा सा हो रहा है
गद्दारों को सिद्ध किया जा रहा है
भूतकाल से भी कोई जरूर मिलेगा
देश वर्तमान में क़र्ज़ से चल रहा है
हर तौर तरीका बदला जा रहा है
अमीर गरीब से बहुत दूर हो रहा है
भूत काल से पूछने से क्या मिलेगा
देश वर्तमान में क़र्ज़ से चल रहा है
यहाँ अमीर, फ़कीर संत हो रहा है
एक भी पैसा देश को कौन दे रह है
तिजोरियां लुटा दी थी भूत काल ने
वर्तमान उसी कुर्बानी पर चल रहा है
हाथ फैलाये हर कोई मांग रहा है
कौन है जो देश को सर्वस्व दे रहा है
भूतकाल ने लुटाया था सब कुछ अपना
देश पर अब कौन कुछ लुटा रहा है
नेता की बात हर कोई कर रहा है
दल की बात हर कोई कर रहा है
नेता या दल देश का कब हुआ है
नेता दल तक सिमित हो रहा है
क्या कोई है जो कोशिश कर रहा है
दौलत नेता और दल की माप रहा है
कुछ तो हिस्सा ठेकेदार का भी होगा
कौन देश को उसका हिस्सा दिला रहा है
मजदूर धीरे धीरे गुलाम हो रहा है
किसान की खातिर प्लान चल रहा है
क्या देश अमीरों का ही हो जायेगा
क़र्ज़ देश का नसीब हो रहा है
देश तुन्हें पुकार रहा है
कोई फिर देश को बुरी नज़र से देख रहा है
क़र्ज़ अब देश का उतरना होगा
धन देश का किस और जा रहा है