अब तू ही बता, मैं तेरे लिए गीत लिखूं या ग़ज़ल लिखूं,
तेरी हर अदा पे बिखर जाऊँ, या खुद को सँभाल लिखूं...?
जब तू मुस्काए, लगे जैसे
कोई राग बिना सुर के बजता है,
और जब तू चुप हो, लगता है
जैसे मन भीतर कुछ रुकता है।
इन धड़कनों की उलझन को
किस नाम के आँचल में ढक दूँ...?
अब तू ही बता...
तेरी यादें बूँदें बन जाएँ
या सावन की बदली कहलाएँ,
तेरे छूने भर से मौसम
कितने रंगों में बदल जाएँ।
इन लम्हों की परिभाषा को
मैं किस कविता की चाल लिखूं...?
अब तू ही बता...
मैं तेरे लिए झील बन जाऊँ
या तेरे सूरज को ओढ़ लूं,
तेरे हर दर्द को पी जाऊँ
या अश्कों में कोई मोड़ लूं।
तेरे ख्वाबों की कश्ती को
किस सागर में आज निकाल लिखूं...?
अब तू ही बता, मैं तेरे लिए गीत लिखूं या ग़ज़ल लिखूं,
तेरी हर अदा पे बिखर जाऊँ, या खुद को सँभाल लिखूं...?
नूतन प्रजापति
स्वरचित
बड़ागाँव मध्यप्रदेश