मेरी खामोशी की एक जुबान हे ,
जिसे मेरी कलम सुनती हे
मेरे हर जज्बातों को बखूबी समझकर ,
शब्दों मैं बुनती हे
घर के किसी कोने मे,
में ,कागज और कलम
खयालों का बीज बोते हैं
कभी हंसते कभी रोते हैं ,
जब हम एक साथ होते हैं
साक्षी लोधी
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जिसे मेरी कलम सुनती हे
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शब्दों मैं बुनती हे
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खयालों का बीज बोते हैं
कभी हंसते कभी रोते हैं ,
जब हम एक साथ होते हैं
साक्षी लोधी