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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

प्रथाएंँ बदलती रहती है

जो बेटियांँ पीहर में खिलखिलाती रहतीं हैं
वही बहू बनकर गम अपना छिपाती रहतीं हैं

अपना मान लेने से कोई अपना हो नहीं जाता
फिर भी ससुराल में सबको अपना बनाती रहतीं हैं

अपवादों को छोड़कर बहुतायत घरों से आज भी
आपसी रंजिशें दरवाजों से झाँकती रहती है

लाज़मी है क्यूंँ छोड़ें सिर्फ लड़कियांँ हीं घर अपना
अधिकांशत: दूसरे घर जाकर तो वो घुटती रहतीं हैं

वक्त के साथ दुनियाँ कितनी आगे बढ़ गई मगर
रुढ़िवादी विचारों में सास बहू उलझतीं रहतीं हैं

बेशक शादियांँ हों मगर कुरीतियों के साथ नहीं
बेटी दान न कर वज़ूद बचाएँ क्यूंँकि वो जान गवाँती रहतीं हैं

क्यूंँ न हम भी अपनी मानसिकता को उन्नत बनाएँ
संशोधन होता हीं रहता है प्रथाएंँ बदलती रहती है




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (4)

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Lekhram Yadav said

बहुत ही खूबसूरत और लाजवाब गजल मेरी प्यारी बहना, मजा आ गया पढ़कर, आपने बहुत ही खूबसूरती के साथ एक औरत के मन के वास्तविक दर्द को शब्दों के साथ उकेरा है। आपको मेरा हार्दिक सादर नमस्कार।

श्रेयसी said

धन्यवाद दर्द को समझने के लिए बहुत-बहुत आभार। सादर प्रणाम लेखराम भैया 🙏🙏

रीना कुमारी प्रजापत said

एक एक लफ़्ज़ दिल को छू गया दीदू रानी..... इससे ज्यादा कुछ समझ नहीं आ रहा कि अब और क्या कहूं तारीफ़ में...... बस यही कहूंगी कि ये तो तय है कि जिस दिन पूरा ज़माना मेरे ख़िलाफ़ होगा आप मेरे साथ होंगी ये आपकी इस रचना में मुझे स्पष्ट नज़र आ रहा है......बहुत सुंदर और स्वतंत्र विचार 👌👌

श्रेयसी said

बिल्कुल रीना जी हम हमेशा आपके साथ हैं और रहेंगे।बस मुझे यही जानना था कि आपका विचार क्या है। बहुत-बहुत आभार समझने के लिए 🙏🙏

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