जो बेटियांँ पीहर में खिलखिलाती रहतीं हैं
वही बहू बनकर गम अपना छिपाती रहतीं हैं
अपना मान लेने से कोई अपना हो नहीं जाता
फिर भी ससुराल में सबको अपना बनाती रहतीं हैं
अपवादों को छोड़कर बहुतायत घरों से आज भी
आपसी रंजिशें दरवाजों से झाँकती रहती है
लाज़मी है क्यूंँ छोड़ें सिर्फ लड़कियांँ हीं घर अपना
अधिकांशत: दूसरे घर जाकर तो वो घुटती रहतीं हैं
वक्त के साथ दुनियाँ कितनी आगे बढ़ गई मगर
रुढ़िवादी विचारों में सास बहू उलझतीं रहतीं हैं
बेशक शादियांँ हों मगर कुरीतियों के साथ नहीं
बेटी दान न कर वज़ूद बचाएँ क्यूंँकि वो जान गवाँती रहतीं हैं
क्यूंँ न हम भी अपनी मानसिकता को उन्नत बनाएँ
संशोधन होता हीं रहता है प्रथाएंँ बदलती रहती है