आओ सुनाऊं ,
एक खुशखबरी ,
चुनाव आए !
पंचवर्षीय ,
महाकुंभ में स्नान,
कर लो भाई !
ईद के चांद ,
दर्शन थे दुर्लभ,
दिखते रोज !
ऋतु - बटेर ,
चहकते - बटेर ,
चौबीस - घंटे !
दरवाजे पे,
सुनकर आहट,
कौन है भाई !
आवाज आई ,
आपका समर्थन,
आशीर्वाद भी !
तेरे दर पे,
आस लगाए बैठा,
वोट - भिक्षुक !
बुढिया आई ,
देखकर चिल्लाई ,
तू हरजाई !
कोई न तेरा,
बहुरूपिए तू है ,
दलबदलू !
पांच साल में ,
घाट - घाट का पानी ,
पीकर - प्यासा !
श्राफ देती हूं ,
टटिहरी बने तू ,
दफा हो जाओ !
एक दिन न्या ,
उम्मीदवार आया ,
पता बताया !
बुढ़िया खुश ,
नेता वफादार है ,
अपेक्षाकृत !
मतदान - दिन ,
बुढ़िया ने उसको ,
वोट दे दिया !
5 साल बाद ,
वो नेता अन्य पार्टी _ ,
चिन्ह लेकर !
खुशी से आया ,
बुढ़िया के घर में ,
मांगने - वोट !
बुढ़िया - सन्न ,
बोली : दुखी मन से ,
वोट जरूर !
बुढ़िया सच्ची ,
थी नहीं बह बच्ची ,
दुनियां स्वार्थी !
अपने घर ,
बोर्ड टांगा उसने ,
लिखा - होश्यार !
इस दौर में ,
स्वार्थ में सत्य बिके ,
निःस्वार्थ स्वाहा !
✒️ राजेश कुमार कौशल