तुमने स्वार्थ हित में
काट दिए सारे वृक्ष
तुम ही बताओ
कहां जाएं हम
अपने विकास में
तूं खुश हो रहा है
जीवन में किसी की
तू सोचें न जाने है
तूने सुंदर धरा से
पेड़ सारे कांटे
कहा हम अपना
अब घोंसला बनाएं
अब इस धरा पर
हो गया सांस लेना दुष्कर
बिना सांसों के सब
कैसे जीएगे और हम
आओ बताएं हम तुम्हें
वृक्ष तुम धरा पर लगाओ
वृक्ष लगाकर धरा को बचाओ
तभी बसेरा यहां करेंगे हम
स्वरचित और मौलिक कविता
सुनील कुमार "खुराना"
नकुड़ सहारनपुर
उत्तर प्रदेश भारत